छठ पूजा का महत्व | छठ पूजा क्यों मनाते हैं

छठ पूजा का महत्व | छठ पूजा क्यों मनाते हैं

छठ पूजा हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और प्राचीन त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के तराई क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार सूर्य देव और छठी मइया की उपासना के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा की मान्यता और इसके पीछे की पौराणिक कहानियों का एक विशेष स्थान है, जो इस त्योहार को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। इस लेख में हम छठ पूजा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे, जिसमें इसके ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, और वैज्ञानिक महत्व को समझने का प्रयास करेंगे।

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छठ पूजा की पौराणिक कथा

छठ पूजा का उल्लेख कई पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इसका संबंध सूर्य उपासना से है, जो मानव सभ्यता के शुरुआती समय से ही चली आ रही है। पुराणों के अनुसार, सूर्य देवता को ऊर्जा, जीवन, और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है। सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए छठ पूजा की जाती है। आइए जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएं:

महाभारत से जुड़ी कथा

महाभारत के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने की थी। जब पांडव अपना सारा राज्य जुए में हार गए थे और उन्हें वनवास जाना पड़ा, तो द्रौपदी ने भगवान सूर्य की उपासना की थी। उन्होंने छठ व्रत किया और सूर्य देवता से अपने पति और परिवार की समृद्धि और कल्याण की कामना की। सूर्य देवता ने उनकी पूजा स्वीकार की और उन्हें पुनः राज्य प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।

रामायण से जुड़ी कथा

छठ पूजा का उल्लेख रामायण से भी जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि जब भगवान श्रीराम और माता सीता 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब उन्होंने राज्याभिषेक के बाद छठ पूजा की थी। उन्होंने सूर्य देवता का आभार व्यक्त करने के लिए यह पूजा की और समृद्धि, शक्ति, और स्वास्थ की कामना की। यह कथा बताती है कि छठ पूजा की परंपरा कितनी पुरानी और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

छठ पूजा का धार्मिक महत्व

छठ पूजा मुख्यतः सूर्य उपासना का त्योहार है, जिसमें लोग सूर्य देवता की कृपा और छठी मइया के आशीर्वाद के लिए व्रत रखते हैं। हिंदू धर्म में सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, जिन्हें हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। सूर्य देव को जीवनदायिनी ऊर्जा का स्रोत माना गया है, और उनकी पूजा से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

इस त्योहार में जल का विशेष महत्व है। भक्तगण नदी, तालाब, या किसी अन्य जल स्रोत के किनारे सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व यह है कि जल सूर्य की किरणों को परावर्तित करता है, जिससे उसका सकारात्मक प्रभाव बढ़ जाता है।

छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें भक्तगण कड़े नियमों और अनुशासन का पालन करते हैं। यह पूजा आत्मशुद्धि, संयम, और साधना का प्रतीक मानी जाती है। भक्तों का मानना है कि इस व्रत को करने से उन्हें इच्छित फल की प्राप्ति होती है, चाहे वह शारीरिक स्वास्थ्य हो, मानसिक शांति हो, या परिवार की समृद्धि।

छठ पूजा के नियम और परंपराएँ

छठ पूजा में कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन किया जाता है। आइए जानते हैं इस पूजा के चार प्रमुख दिनों के नियम और विधि:

पहला दिन: नहाय खाय

छठ पूजा का पहला दिन 'नहाय खाय' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती (जो व्रत रखते हैं) शुद्ध होकर अपने घर की सफाई करते हैं। इस दिन भक्तगण गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। नहाय खाय का मुख्य उद्देश्य शरीर और आत्मा की शुद्धि है, ताकि वे आगामी व्रत और पूजा के लिए तैयार हो सकें।

दूसरा दिन: खरना

दूसरे दिन को 'खरना' कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद चावल, गुड़ से बने खीर, और रोटी के रूप में तैयार किया जाता है। यह प्रसाद बहुत ही शुद्धता और आस्था के साथ बनाया जाता है। खरना के बाद व्रती अगले 36 घंटे तक निराहार और निर्जल रहकर व्रत रखते हैं।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन का महत्व सबसे अधिक होता है। इस दिन व्रती सूर्यास्त के समय सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस पूजा में व्रती अपने परिवार के साथ नदी या तालाब के किनारे जाते हैं और सूर्य देव को दूध और जल से अर्घ्य देते हैं। इस दिन का महत्व यह है कि सूर्य देव की कृपा से संध्या के समय उर्जा का संचार होता है, जो जीवन को समृद्ध और स्वस्थ बनाता है।

चौथा दिन: उषा अर्घ्य

चौथे दिन को 'उषा अर्घ्य' कहा जाता है। इस दिन भक्तगण सुबह सूर्योदय से पहले ही नदी के किनारे जाते हैं और सूर्य देव को दूसरा अर्घ्य अर्पित करते हैं। उषा अर्घ्य के बाद ही व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और परिवारजनों के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन को विशेष रूप से परिवार की समृद्धि और सुख-शांति के लिए समर्पित किया जाता है।

छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व

छठ पूजा न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। इस पूजा में सूर्य की उपासना के दौरान भक्तों का जल में खड़ा होना और सूर्य की किरणों का परावर्तन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसका मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

सूर्य किरणों का प्रभाव: वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य की किरणें मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती हैं। सूर्य की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है। इसके अलावा, सूर्य की किरणें त्वचा की बीमारियों को भी ठीक करने में मदद करती हैं।

जल का महत्व: जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार यह है कि पानी सूर्य की किरणों को परावर्तित करता है और यह परावर्तन शरीर को अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। जल में खड़े होने से शरीर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

आत्मशुद्धि और ध्यान: छठ पूजा के दौरान व्रती द्वारा की जाने वाली साधना और उपवास आत्मशुद्धि का एक साधन है। यह उपवास शरीर को शुद्ध करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। उपवास के दौरान आत्मसंयम और संयम का पालन करने से मन और आत्मा का संतुलन बना रहता है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है।

छठ पूजा का सामाजिक महत्व

छठ पूजा का सामाजिक महत्व भी बहुत गहरा है। इस पूजा के दौरान परिवार और समाज के लोग एकजुट होते हैं और एक साथ पूजा करते हैं। यह त्योहार समाज में भाईचारे, प्रेम, और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।


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